Vishalakshi Temple विशालाक्षी मंदिर

Vishalakshi Mandir

विशालाक्षी गौरी मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। विशालाक्षी इस मंदिर में प्रतिष्ठित देवी हैं। विशालाक्षी एक संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है जिसकी बड़ी आँखें हों। विशालाक्षी मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में, गंगा के तट पर मणिकर्णिका घाट पर स्थित है। वाराणसी का प्राचीन नाम काशी है। काशी प्राचीन भारत की सांस्कृतिक एवं पुरातत्व की धरोहर है। काशी  हिंदुओं की सात पवित्र नगरों में से एक है।

पौराणिक महत्व

  • शक्ति पीठ देवी मां के मंदिर या पवित्र स्थल हैं। शक्ति और शिव को प्रसन्न करने के लिए, भगवान ब्रह्मा ने एक यज्ञ किया। देवी शक्ति प्रकट हुईं, शिव से अलग होकर, और ब्रह्मांड के निर्माण में ब्रह्मा की सहायता की। ब्रह्मा ने शिव को शक्ति वापस देने का फैसला किया। इस वजह से, उनके बेटे दक्ष ने सती के रूप में शक्ति को अपनी बेटी के रूप में पाने के लिए कई यज्ञ किए।

प्रजापति दक्ष की इच्छाओं की अवहेलना कर, उनकी बेटी सती ने भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया लेकिन भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं दिया। सती अप्रत्याशित रूप से यज्ञ स्थल पर पहुंचीं, लेकिन दक्ष ने सती और शिव दोनों को नजर अंदाज कर दिया। सती ने वहीं यज्ञ स्थल पर ही आत्मदाह कर लिया क्योंकि वह अपमान सहन नहीं कर सकीं। जब भगवान शिव को भयानक घटना के बारे में पता चला, तो वे बहुत क्रोधित हुए।

उन्होंने मृत सती के शरीर को अपने कंधों पर रखा और तांडव करना शुरू कर दिया। विष्णु द्वारा उन्हें शांत करने के हर प्रयास का शिव ने विरोध किया। बाद में, उन्होंने सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काटने के लिए अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल किया। लोकप्रिय मान्यता यह है कि देवी सती के आँखें और दाहिने कान के मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे जहां विशालाक्षी गौरी मंदिर स्थित है। कारण से माँ को विशालाक्षी, विशाल नेत्र वाली कहा जाता है, क्योंकि दिव्य नेत्र संपूर्ण ब्रह्मांड का निरीक्षण करने में सक्षम है।

  • एक अन्य कथा के अनुसार मां विशालाक्षी ही अन्नपूर्णा है और उनके आशीर्वाद से ही समस्त लोगों को भोजन प्राप्त होता है। ‘स्कंद पुराण’ की कथा के अनुसार जब ऋषि व्यास को वाराणसी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था, तब विशालाक्षी एक गृहिणी की भूमिका में प्रकट हुईं और ऋषि व्यास को भोजन दिया। विशालाक्षी की भूमिका बिलकुल अन्नपूर्णा के समान थी।

मंदिर में हैं मां की दो प्रतिमाएं

काशी के इस शक्तिपीठ में माता विशालाक्षी की दो प्रतिमा है – एक चल और दूसरी अचल। दोनों ही प्रतिमाओं का समान रूप से पूजा – अभिषेक आदि होता है। चल मूर्ति की विशेष पूजा नवरात्र के समय विजयादशमी पर्व वाले दिन घोड़े पर बैठा कर की जाती है। जबकि अचल मूर्ति की विशेष पूजा साल में दो बार की जाती है। जिसमें से एक भादौं कृष्ण पक्ष की कजरी वाले दिन माता की जयंती के रूप में, तो दूसरी दीपावली के दूसरे दिन माता का अन्नकूट करके किया जाता है। जबकि चैत्र के नवरात्र में मां विशालाक्षी का नव गौरियों में पंचमी के दिन माताजी का दर्शन होता है। हालांकि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है।

महत्त्व

श्रद्धालु यहां शुरू से ही देवी माँ के रूप में विशालाक्षी तथा भगवान शिव के रूप में काल भैरव की पूजा करने आते हैं। पुराणों में ऐसी परंपरा है कि विशालाक्षी माता को गंगा स्नान के बाद धूप, दीप, सुगंधित हार व मोतियों के आभूषण, नवीन वस्त्र आदि चढ़ाए जाएँ। देवी विशालाक्षी की पूजा-उपासना से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यहां दान, जप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि यह शक्तिपीठ दुर्गा मां की शक्ति का प्रतीक है। दुर्गा पूजा के समय हर साल लाखों श्रद्धालु इस शक्तिपीठ के दर्शन करने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि यहां 41 मंगलवार ‘कुमकुम’ का प्रसाद चढ़ाया जाए तो इससे देवी माँ भक्त झोली भर देती हैं।

समारोह और त्यौहार

श्री विशालाक्षी मंदिर में विशेष रूप से कजली तीज, दुर्गा पूजा और नवरात्रि के त्योहार पर विशेष पूजा होती है। इस दिन मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण भक्तों के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।

मंदिर का समय:

सुबह 05:00 बजे खुलता है और रात 9:00 बजे बंद होता है।

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