Swaha Devi स्‍वाहादेवी

Swaha Devi स्‍वाहा देवी

स्वाहा को संस्कृत में स्व: लिखा जाता है। इसका हिंदी में अर्थ होता है स्वर्ग लोक। अर्थात स्वर्ग के समान सुख की प्राप्ति हेतु आहुति के समय स्वाहा का उच्चारण किया जाता है।

स्वाहा देवी

पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था। अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हवन के योग्य सामग्री (हविष्य) ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है।

स्वाहा का अर्थ

जब भी हवन होता है उसमें स्वाहा का उच्चारण करते हुए हवन सामग्री हवन कुंड में डाली जाती है। स्वाहा का अर्थ सही रीति से पहुंचाना होता है। माना जाता है कि कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हविष्य (हवन के योग्य सामग्री) का ग्रहण देवता न कर लें। देवता ऐसा हविष्य तभी स्वीकार करते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अपर्ण किया जाए।

यज्ञ पूरा नहीं होता

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक कोई भी यज्ञ तब तक पूरा नहीं होता है जब तक हवन का ग्रहण देवता नहीं कर लेते। हवन सामग्री को देवता तभी ग्रहण करते हैं जब अग्नि में आहुति डालते समय स्वाहा बोला जाता है।

स्वाहा देवी की कथा

सृष्टि के आरंभ में जब देवताओं की उत्पत्ति हुई तो उन्हें आहार भी चाहिए था। अपब देवताओं अपने भोजन की खोज में इधर-उधर भटकना पड़ता था। इस कारण वे अपने वे सारे कार्य समय से पूर्ण नहीं कर पाते थे जो देवों ने ब्रह्मा को अपनी समस्या बताई।

ब्रह्मा ने कहा मैं तो रचयिता हूं। मैंने सृजन कर दिया। पालन की जिम्मेदारी श्रीविष्णु की है। इसलिए हे देवताओं आपको श्रीहरि के पास जाना  चाहिए। वे ही इसका वास्तविक निदान दे सकते हैं। ब्रह्माजी के आदेश से देवतागण श्रीहरि के लोक पहुंचे। वहां उन्होंने स्तुति आदि के बाद अपनी समस्या बताई और कहा कि ब्रह्मा जी  ने आपके पास भेजा है। अब श्रीहरि को निदान निकालना था।

नारायण अपने अंश से यज्ञपुरुष के रूप में प्रकट हुए। यज्ञपुरुष स्वरूप में नारायण ने देवताओं से कहा- ब्राह्मण या यजमान आदि जो यज्ञादि करेंगे हविष का वही अंश देवताओं को भोजन के रूप में प्राप्त होगा। भूलोक पर यज्ञादि भरपूर होते रहते हैं। इसलिए उन्हें भोजन की समस्या न होगी। हे देवताओं जाओ और ब्रह्मा जी के आदेश के अनुसार अपना कार्य पूरा करें। आपके आहार का प्रबंध कर दिया है।

खुश होकर देवताओं ने विदा ली लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह व्यवस्था उनके लिए समस्या का हल करने से ज्यादा कष्टकारी होने वाली है।  वास्तव में ब्राह्मण जो हवन अग्नि में डालते, अग्नि उसे जला नहीं पाते। कारण, नारायण के संकल्प के साथ डाले गए हविष को जलाने की शक्ति अग्नि में नहीं थी। अब बिना जला हुआ अंश देवताओं तक पहुंच नहीं पाता था।

इसलिए देवों ने फिर से नारायण की स्तुति आरंभ की। भगवान प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। देवों ने कहा- यज्ञ आहुतियां आपका संकल्प लेने के बाद अग्नि में डाली जाती है। इसलिए अग्निदेव यज्ञ आहुतियों को भस्म नहीं कर पाते। इस कारण हमें फिर से निराहार  रहना पड़ रहा है। आप अग्नि को भस्म करने की शक्ति प्रदान करें ताकि हवन सामग्री का आहार हमें मिले।

भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं से कहा कि वे उनके साथ देवी भगवती का स्मरण करें।  समस्त चरा-चर के लिए वह पोषण प्रदान करती हैं। नारायण के साथ-साथ देवताओं द्वारा आह्वान पर भगवती प्रकट हुईं। उन्होंने देवताओं की परेशानी समझी। नारायण ने उनसे कुछ पोषक शक्ति मांगी और फिर उससे एक देवी की उत्पत्ति हुई। भगवती की वह अंश देवी स्वाहा कहलाईं।

नारायण ने ब्रह्माजी से कहा- भगवती के अंश से उत्पन्न स्वाहा अग्नि की भस्म शक्ति बनकर देवों के लिए दिए गए हवन को भस्म करेंगी। इस तरह उन्हें आहार प्राप्त होगा। ऐसा वरदान देकर नारायण अंतर्ध्यान हो गए।

स्वाहा शब्द का महत्व


वास्तव में स्वाहा अग्नि देव की पत्नी हैं। इसलिए हवन (कैसे बनाएं हवन सामग्री )में हर मंत्र के बाद उनके नाम का उच्चारण करने से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं और इससे आहुति को पूर्ण माना जाता है। स्वाहा कहते हुए मंत्र पाठ करने से और हवन सामग्री अर्पित करने से यह ईश्वर को समर्पित भी मानी जाती है।

3 thoughts on “Swaha Devi स्‍वाहादेवी”

  1. Dr Rajesh Kankar

    आपका बहुत ही आभारी हूं जो आपने स्वाहा माता के बारे में जानकारी दी। इस चीज का मुझे कतई भी ज्ञान नहीं था🙏

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