हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या का महत्व और रीति-रिवाज
सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। प्रत्येक मास में एक अमावस्या होती है और प्रत्येक सात दिनों बाद एक सोमवार आता है। हालांकि, अमावस्या का सोमवार के दिन पड़ना बहुत ही कम होता है। गणित के प्रायिकता सिद्धांत के अनुसार अमावस्या वर्ष में एक अथवा दो बार ही सोमवार के दिन हो सकती है। इस लेख में, हम सोमवती अमावस्या के आध्यात्मिक महत्व और इससे जुड़े रीति-रिवाज के बारे में जानेंगे।
सोमवती अमावस्या का महत्त्व
- हमारे धर्मग्रंथों में यह कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या आने पर बड़ा भाग्यशाली होता है, लेकिन पांडव अपने पूरे जीवन में सोमवती अमावस्या का अनुभव नहीं कर पाए।
- सोमवती अमावस्या का स्नान और दान महत्वपूर्ण माना जाता है।
- जब किसी मास की अमावस्या को सोमवार पड़ता है, तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस दिन गंगा, यमुना और अन्य तीर्थ स्थलों में स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, सोना और अन्य दानों का विशेष महत्व होता है। इस दिन स्नान भी विशेष महत्त्वपूर्ण होता है। इसी कारण से गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों के किनारों पर इतने श्रद्धालु एकत्र होते हैं कि वहां मेले लग जाते हैं।
- वेदव्यास ने निर्दिष्ट किया है कि इस दिन मौन रहकर स्नान और ध्यान करने से हजार गोदान का पुण्य मिलता है। यह स्त्रियों का प्रमुख व्रत है।
- सोमवार चंद्रमा का दिन होता है। इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य और चंद्रमा सीधे एक साथ रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्यदायी होता है।
- सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता है और सोमवती अमावस्या पूर्णतः शिव जी को समर्पित होती है।
यदि इस दिन गंगा, यमुना जी जाने का विकल्प नहीं हो, तो सुबह कोई नदी या सरोवर में स्नान करने के बाद भगवान शंकर, पार्वती और तुलसी की भक्तिपूर्वक पूजा करें। फिर पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करें और प्रत्येक परिक्रमा में कोई वस्त्र चढ़ाएं। प्रदक्षिणा के समय 108 फल अलग रखें और समापन के समय उन सभी वस्त्रों को ब्राह्मणों और निर्धनों को दान करें।
सोमवती अमावस्या की कथा
जब युद्ध के मैदान में सारे कौरव वंश का सर्वनाश हो गया, भीष्म पितामह शर-शैय्या पर पड़े हुए थे। उस समय युधिष्ठर भीष्म पितामह जी से पश्चाताप करने लगे। धर्मराज कहने लगे हे पितामह! दुर्योधन की बुरी सलाह पर एवं हठ से भीम और अर्जुन के कोप से सारे कुरू वंश का नाश हो गया है। वंश का नाश देखकर मेरे हृदय में दिन रात संताप रहता है। हे पितामह! अब आप ही बताइये कि मैं क्या करू, कहाँ जाऊँ, जिससे हमें शीघ्र ही चिरंजीवी संतति प्राप्त हो। पितामह कहने लगे, हे! राजन् धर्मराज मैं तुम्हें व्रतों में शिरोमणि व्रत बतलाता हूँ जिसके करने एवं स्नान करने मात्र से चिरंजीवी संतान एवं मुक्ति प्राप्त होगी। वह है सोमवती अमावस्या का व्रत- हे राजन्! यह व्रतराज (सोमवती अमावस्या का व्रत) तुम उत्तरा से अवश्य कराओ जिससे तीनों लोकों में यश फैलाने वाला पुत्र रत्न प्राप्त होगा। धर्मराज ने कहा, कृपया पितामह इस व्रतराज के बारे में विस्तार से बताइये ये सोमवती कौन है? और इस व्रत को किसने शुरू किया।
भीष्मजी ने कहा, “हे बेटे! कांची नामक एक महापुरी है, जहां महा पराक्रमी रत्नसेन नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण निवास करता था और उसके सात पुत्र एवं गुणवती नामक एक कन्या थी। एक दिन एक भिक्षुक ब्राह्मण भिक्षा मांगने आया। सातों बहुएं ने उसे अलग-अलग भिक्षा दी और सौभाग्यशाली गुणवती को उसका आशीर्वाद प्राप्त हुआ। अंत में गुणवती ने भिक्षा दी। भिक्षुक ब्राह्मण ने उसे धर्मवती होने का आशीर्वाद दिया और कहा, ‘यह कन्या विवाह के समय सप्तपदी के बीच ही विधवा हो जाएगी, इसलिए इसे धर्माचरण ही करना चाहिए।’ गुणवती की मां धनवती ने गिड़गिड़ाते दीन स्वर में कहा, ‘हे ब्राह्मण! हमारी पुत्री के विधवापन को दूर करने का उपाय बताइए।’ तब भिक्षुक ने कहा, ‘हे पुत्री! यदि तेरे घर सौमा आ जाए, तो उसके पूजन से ही तेरी पुत्री का विधवापन दूर हो सकता है।’ गुणवती की मां ने पूछा, ‘पण्डित जी, सौमा कौन है? वह कहां निवास करती है और क्या करती है? विस्तार से बताइए।’ भिक्षुक ने कहा, ‘भारत के दक्षिण में समुद्र के बीच एक द्वीप है, जिसका नाम सिंहल द्वीप है। वहां एक कीर्तिमान धोबी निवास करता है। उस धोबी के यहां सौमा नामक एक स्त्री है, जो तीनों लोकों में अपने सत्य के कारण पतिव्रता धर्म को प्रकट करने वाली सती है। उसके सामने भगवान और यमराज भी झुकने पड़ते हैं, जो जीव उसकी शरण में जाता है, उसका क्षण मात्र में ही उद्धार हो जाता है। सारे पापों का विनाश हो जाता है और अपार सुख-समृद्धि प्राप्त हो जाती है। तुम उसे अपने घर ले आओ, तो तुम्हारी बेटी का विधवापन दूर हो जाएगा।”
देवस्वामी के सबसे छोटे पुत्र शिवस्वामी ने अपनी बहिन को साथ लेकर सिंघल द्वीप जाने का निर्णय लिया। रास्ते में समुद्र के पास रात्रि को गृद्धराज के यहाँ ठहरे। प्रातःकाल होने पर गृद्धराज ने उन्हें सिंघल द्वीप पहुँचा दिया और वे सौमा के घर के पास ही ठहर गये। उसके बाद वह दोनों भाई-बहिन प्रात:काल में उस धोबी की पत्नी सोमा के घर की चौक को साफ़ करने, प्रतिदिन लीप पोत करके सुंदर बनाते थे और उसकी देहरी पर प्रतिदिन आटे का चौक पूजकर अरहैन डाला करते थे। उसी समय से आज भी देहरी पर अरहैन डालने की प्रथा चली आ रही है। इस प्रकार यहाँ एक साल बित गया। इस प्रकार की स्वच्छता को देखकर सोमा विस्मित होकर अपने पुत्रों और पुत्रवधुओं से पूछा कि यहाँ कौन झाड़ू लगाकर लीपा पोती करता है और कौन अरहैन डालता है, मुझे बताओ। उन्होंने कहा हमें नहीं पता और हमने ऐसा कार्य नहीं किया। तभी एक दिन उस धोबिन ने रात में छिपकर पता किया, तो पता चला कि एक लड़की आँगन में झाडू लगा रही है और एक लड़का उसे लीप रहा है। सौमा ने उन दोनों से पूछा, “तुम कौन हो?” तो उन्होंने कहा, “हम दोनों भाई-बहिन ब्राह्मण हैं।” सौमा ने कहा, “तुम्हारे इस कार्य से मैं प्रलय हो गई, मैं बर्बाद हो गई। इस पाप से मेरी क्या होगी हालत हे विप्र? मैं धोबिन हूँ और तुम ब्राह्मण हो, फिर तुम इस विपरीत कार्य क्यों कर रहे हो?” शिवस्वामी ने कहा, “यह गुणवती मेरी बहिन है, इसके विवाह के समय सप्तवदी के बीच वैधव्य योग पड़ा है। आपके पास रहने से वैधव्य योग का नाश हो सकता है, इसलिए हम यह दास कर्म कर रहे हैं।” सोमा ने कहा, “अब से ऐसा मत करना, मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।”
सोमा ने अपनी वधुओं से कहा, “मैं इनके साथ जा रही हूँ। यदि मेरे राज्य में मेरा व्यक्ति मर जाए जब तक मैं लौटकर न आ जाऊँ, तब तक उसका क्रिया कर्म मत करना और उसके शरीर को सुरक्षित रखना। किसी के कहने पर जला मत देना। ऐसा दोनों को कहकर समुद्र मार्ग से होकर कांची नगरी में पहुँच गयी। सोमा को देखकर धनवती ने प्रसन्न हो उसकी पूजा अर्चना की। सोमा ने अपनी मौजूदगी में गुणवती का विवाह रुद्र शर्मा के साथ सम्पन्न करा दिया, फिर वैवाहिक मंत्रों के साथ हवन करवा दिया। उसके बाद सप्तसदी के बीच रुद्र शर्मा की मृत्यु हो गयी, अर्दना बहिन को विधवा जानकर सारे घरवाले रोने लगे, किन्तु सोमा शांत रही। सोमा ने अति विलाप देखकर अपना व्रतराज सत्य समझाया और व्रतराज के प्रभाव से होने वाला मृत्यु विनाशक पुष्प विधि पूर्वक संकल्प करके दे दिया। रुद्र शर्मा व्रतराज के प्रभाव से शीघ्र जीवित हो गया। उसी बीच, उस सोमा के घर में पहले उसके लड़के मरे, फिर उसका पति मरा, फिर उसका जमाता भी मर गया। सोमा ने अपने सत्य से सारी स्थिति जान ली, वह घर चलने लगी। उस दिन सोमवार का दिन था और अमावस्या की तिथि भी थी। रास्ते में सोमा ने नदी के किनारे स्थित एक पीपल के पेड़ के पास जाकर नदी में स्नान किया और विष्णु भगवान की पूजा करके शक्कर हाथ में लेकर 108 प्रदाक्षिणाऐं पूरी कीं। भीष्म जी बोले, “जब सोमा ने हाथ में शक्कर लेकर 108वीं प्रदक्षणा पूरी की तभी उसके पति, जमाता और पुत्र भी सभी जीवित हो गए और वह नगर लक्ष्मी से परिपूर्ण हो गया। विशेषकर, उसका घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। चारों ओर हर्षोल्लास छा गया। भीष्म जी कहने लगे, “हमने यह व्रतराज का फल विस्तार से कह सुनाया। यदि सोमवार युक्त अमावस्या, अर्थात सोमवती अमावस्या हो तो पुण्यकाल देवताओं को भी दुर्लभ है। तुम भी यह व्रत धारण करो, तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। अर्जुन, कलियुग में जो सती सोमवती के चरित्र का अनुसरण करेगी, सोमवती के गुणों का गुणवान बनेगी, वह संसार में सुयश प्राप्त करेगी। जो व्यक्ति सोम के आदर्शों का अनुसरण करेगा, धोबियों को धन देगा, सोमवती अमावस्या के दिन व्रतराज के समय धोबियों को यथा दक्षिणा देगा और उनके साथ भोज कराएगा, धोबी के बच्चों को पुस्तक दान करेगा, वह सदा अनर्थ को प्राप्त करेगा। विवाह के समय कोई भी वर्ग की कन्या की मांग में सिन्दूर धोबी की सुहागिन स्त्री से भरवाएगा, तो उसे स्वर्ण या रत्न दान करेगा और उसकी कन्या की सुखी और लम्बी आयु होगी और वैधव्य योग का प्रभाव नष्ट हो जाएगा। जो धोबी की कन्याओं का अपमान करेगा, चाहे वह ब्राह्मण ही क्यों न हो, वह जन्म-जन्मांतर तक नरक में पड़ा रहेगा।
जब उस ब्राह्मण ने अद्भुत चमत्कार देखा, तो वह सोमा के चरणों में गिर गया और धूप, दीप, पुष्प, कपूर से आरती करके विभिन्न प्रकार से पूजा अर्चना की। जगत के पूज्य, सर्वशक्तिमान हों, युगों-युगों तक आपकी पूजा हो, यह ब्राह्मण वंश करेगा। जो उपकार आपने किया है, वह भुलाने योग्य नहीं है, आपके साथ-साथ आपके वंश की सतियां भी आपके चरित्र का अनुसरण करेंगी, उनकी पूजा भी युगों-युगों तक होगी।