Parikrama देव मूर्ति की परिक्रमा का महत्व

देव मूर्ति की परिक्रमा का महत्व: धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

Introduction

देव मूर्ति की परिक्रमा का महत्व हिन्दू धर्म में गहन मान्यताओं और परंपराओं का हिस्सा है। यह एक पूजा प्रथा है जिसमें विशिष्ट देवी-देवताओं की मूर्ति को घेरा जाता है और परिक्रमा की जाती है। इस प्रथा का महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक संबंधों के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक, और आधारभूत तत्वों पर भी है। परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं को कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिस देवी-देवता की परिक्रमा की जा रही है, उसकी परिक्रमा के दौरान उसका मंत्र जाप मन में करें। मन में निंदा, बुराई, दुर्भावना, क्रोध, तनाव आदि विकार न आने दें। जूते, चप्पल निकाल कर नंगे पैर ही परिक्रमा करें। हंसते-हंसते, बातचीत करते-करते, खाते-पीते, धक्का-मुक्की करते हुए परिक्रमा न करें। परिक्रमा के दौरान दैवी शक्ति से याचना न करें। देवी-देवता को प्रिय तुलसी, रुद्राक्ष, कमलगट्टे की माला उपलब्ध हो, तो धारण करें। परिक्रमाएं पूर्ण कर अंत में प्रतिमा को साष्टांग प्रणाम कर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ आशीर्वाद हेतु प्रार्थना करें। इस लेख में, हम देखेंगे कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों महत्वपूर्ण है और इसके पीछे छिपी विशेषताओं को विस्तार से समझेंगे।

देव मूर्ति की परिक्रमा का महत्व

देव मूर्ति की परिक्रमा को करने का महत्व बहुत गहरा है। इसके कई पहलू हैं जो हमें समझने चाहिए। परिक्रमा करना कोरा अंधविश्वास नहीं, बल्कि यह विज्ञान सम्मत है। जिस स्थान या मंदिर में विधि-विधानानुसार प्राण प्रतिष्ठित देवी-देवता की मूर्ति स्थापित की जाती है उस स्थान के मध्य बिंदु से प्रतिमा के कुछ मीटर की दूरी तक उस शक्ति की दिव्य प्रभा रहती है, जो पास में अधिक गहरी और बढ़ती दूरी के हिसाब से कम होती चली जाती है। ऐसे में प्रतिमा की पास से परिक्रमा करने से शक्तियों के ज्योतिमंडल से निकलने वाले तेज की हमें सहज ही प्राप्ति हो जाती है।

1. साधना का अवसर

देव मूर्ति की परिक्रमा धार्मिक साधना का एक महत्वपूर्ण अवसर है। जब हम मूर्ति के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, तो हमारा मन और आत्मा एकाग्र होते हैं और हम अपने आंतरिक स्थिति में स्थिरता प्राप्त करते हैं। यह हमें ध्यान और ध्यान की अवस्था में ले जाता है, जिससे हम अपने आंतरिक स्वरूप को समझते हैं और उससे जुड़ते हैं। चूंकि दैवीय शक्ति की आभा मंडल की गति दक्षिणवर्ती होती है, अतः उनकी दिव्य प्रभा सदैव -ही दक्षिण की ओर गतिमान होती है। यही कारण है कि दाएं हाथ की ओर से परिक्रमा किया जाना श्रेष्ठ माना गया है। यानी दाहिने हाथ की और से घूमना ही प्रदक्षिणा का सही अर्थ है। हम अपने इष्ट देवी-देवता की मूर्ति की, विविध शक्तियों की प्रथा या तेज को परिक्रमा करके प्राप्त कर सकते हैं। उनका यह तेजदान वरदान स्वरूप विघ्नों, संकटों, विपत्तियों का नाश करने में समर्थ होता है। इसलिए परंपरा है कि पूजा-पाठ, – अभिषेक आदि कृत्य करने के बाद देवी-देवता की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

2. सामर्थ्य का प्रतीक

देव मूर्ति की परिक्रमा हमारे आस-पास मौजूद शक्तियों और सामर्थ्य के प्रतीक के रूप में कार्य करती है। हमारे आस-पास अनगिनत देवी-देवताएं हैं जिन्हें हम पूजते हैं और उनका आदर करते हैं। इस प्रक्रिया में देवी-देवताओं के प्रतीकों के चारों ओर परिक्रमा करने से हम उनसे जुड़ते हैं और उनकी शक्तियों का आदान-प्रदान होता है। कहा जाता है कि प्रतिमा की शक्ति की जितनी अधिक परिक्रमा की जाए, उतना ही वह लाभप्रद होती है। फिर भी कृष्ण भगवान् की तीन परिक्रमा की जाती है। देवी जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। आमतौर पर पांच, ग्यारह परिक्रमा करने का सामान्य नियम है। शास्त्रों में भगवान् शंकर की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को न लांघने का विधान बताया गया है। इसलिए इनकी पूरी परिक्रमा न कर आधी की जाती है और आधी वापस उसी तरफ लौटकर की जाती है। मान्यता यह है कि शंकर भगवान् के तेज की लहरों की गतियां बाई और दाई दोनों ओर होती हैं। उलटी यानी विपरीत बामवर्ती (बाएं हाथ की तरफ से) परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिमंडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है। परिणामस्वरूप हमारा तेज नष्ट हो जाता है। इसीलिए वामवर्ती परिक्रमा को वर्जित किया गया है। इसे पाप स्वरूप बताया गया है। इसके घातक परिणाम उस दैवीय शक्ति पर निर्भर करते हैं, जिसकी विपरीत परिक्रमा की गई है। जाने या अनजाने में की गई उलटी परिक्रमा का दुष्परिणाम तो भुगतना ही पड़ता है

3. शांति और प्रसन्नता का स्रोत

देव मूर्ति की परिक्रमा हमें शांति और प्रसन्नता का स्रोत प्रदान करती है। जब हम देवी-देवताओं के प्रतीकों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, तो हमारे मन की चंचलता कम होती है और हम शांति की अवस्था में आते हैं। यह हमें स्थिरता और मानसिक शांति प्रदान करके हमारे जीवन में समृद्धि लाती है। पदमपुराण में हरिपूजा विधि वर्णन के अंतर्गत श्लोक 114-118 में कहा गया है कि भक्तिभाव से जो मनुष्य भगवान् विष्णु की परिक्रमा करने में धीरे-धीरे जितने भी कदम चलता है, उसके एक-एक पद के चलने में मनुष्य एक-एक अश्वमेघ यज्ञ करने का फल प्राप्त किया करता है। जितने कदम प्रदक्षिणा करते हुए भक्त चलता है, उतने ही सहस कल्पों तक भगवान् विष्णु के धाम में उनके ही साथ प्रसन्नता से निवास करता है। संपूर्ण संसार की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उनके भी करोड़ गुणा, अधिक श्रीहरि की प्रदक्षिणा करने में फल प्राप्त हुआ करता है।

FAQs

Q1: देव मूर्ति की परिक्रमा क्या है?

देव मूर्ति की परिक्रमा हिन्दू धर्म में एक पूजा प्रथा है, जिसमें विशिष्ट देवी-देवताओं की मूर्ति की परिक्रमा की जाती है। इस प्रथा में श्रद्धा और आदर के साथ देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और उनसे जुड़ने का अवसर प्राप्त होता है।

Q2: क्या देव मूर्ति की परिक्रमा मानसिक शांति देती है?

हां, देव मूर्ति की परिक्रमा हमें मानसिक शांति देती है। इस प्रथा में हम देवी-देवताओं के प्रतीकों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, जिससे हमारा मन शांत होता है और हम आत्मिक सुकून प्राप्त करते हैं।

Q3: क्या देव मूर्ति की परिक्रमा सामर्थ्य का प्रतीक है?

हां, देव मूर्ति की परिक्रमा हमारे आस-पास मौजूद शक्तियों और सामर्थ्य के प्रतीक के रूप में कार्य करती है। हम देवी-देवताओं के प्रतीकों के चारों ओर परिक्रमा करके उनसे जुड़ते हैं और उनकी शक्तियों का आदान-प्रदान प्राप्त करते हैं।

Q4: क्या देव मूर्ति की परिक्रमा साधना का अवसर प्रदान करती है?

हां, देव मूर्ति की परिक्रमा साधना का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है। इस प्रक्रिया में हमारा मन और आत्मा एकाग्र होते हैं और हम अपने आंतरिक स्वरूप को समझते हैं और उससे जुड़ते हैं।

Q5: देव मूर्ति की परिक्रमा क्या हमें शांति और प्रसन्नता प्रदान करती है?

जी हां, देव मूर्ति की परिक्रमा हमें शांति और प्रसन्नता प्रदान करती है। इस प्रक्रिया में हम देवी-देवताओं के प्रतीकों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, जिससे हमारे मन की चंचलता कम होती है और हम शांति की अवस्था में आते हैं।

Conclusion

देव मूर्ति की परिक्रमा हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा प्रथा है जो हमें धार्मिक, आध्यात्मिक, और मानसिक स्तर पर समृद्धि प्रदान करती है। इसके माध्यम से हम देवी-देवताओं से जुड़ते हैं और उनकी शक्तियों का आदान-प्रदान प्राप्त करते हैं। यह हमें अपने आंतरिक स्वरूप को समझने और सकारात्मकता और शांति की प्राप्ति में मदद करती है। इसलिए, हमें देव मूर्ति की परिक्रमा का महत्व समझना चाहिए और इसे अपने जीवन में अमल में लाना चाहिए।

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