माण्डूक्य उपनिषद् में कहा गया है-
युंजीत प्रणवे चेतः प्रणवो ब्रह्म निर्भयम् । प्रणवे नित्ययुक्तस्य न भयं विद्यते क्वचित् ॥ माण्डूक्य उप. आगम प्रकरण 25
अर्थात् चित्त को ॐ में समाहित करो। ॐ निर्भय ब्रह्मपद है। ॐ में नित्य समाहित रहने वाले पुरुष
को कहीं भी भय नहीं होता।
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है-
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥ श्रीमद्भगवद्गीता 8/15
अर्थात् मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, योगधारण में स्थित होकर जो पुरुष ॐ इस एक अक्षररूप ब्रह्म का उच्चारण और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है।
आगे वे श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 17 के श्लोक 24 में कहते हैं कि वेद मंत्रों का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएं सदा ॐ इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरंभ होती हैं।
ओम (ॐ) का शास्त्रों में अधिक महत्त्व क्यों
ओम एक पवित्र ध्वनि है जो अत्यावश्यक ऊर्जा है और बेहद शक्तिशाली है। यह शब्दकोश की परिभाषाओं वाला कोई शब्द मात्र नहीं है। ओम को “ईश्वर का शब्द” कहा गया है। ओम वह ध्वनि कंपन है जो संपूर्ण दृश्यमान ब्रह्मांड को जन्म देता है। ऐसा माना जाता है कि यह ब्रह्मांड के निर्माता, संरक्षक और विध्वंसक की आवाज़ है। यह सभी प्राणियों और संसारों में सभी प्रकार की चेतना और जीवन का समर्थन करता है।
पारलौकिक इकाई ओम सृष्टि के बीज से निकलने वाली पहली कंपन ध्वनि होने के अलावा, ओम को अंतरिक्ष और समय के सभी पैमाना को पार करने और अतीत, वर्तमान और भविष्य को समाहित करने वाला कहा जाता है। परिणामस्वरूप, कुछ दार्शनिक सोचते हैं कि शब्दांश ओम बोलने की शुरुआत का प्रतीक है, और अन्य लोग यह भी सोचते हैं कि यहीं से भाषाएँ पहली बार शुरू हुईं।
हिंदू धर्म में ओम को प्रणव मंत्र के रूप में जाना जाता है। ओम का उच्चारण एक शुभ शुरुआत का संकेत देता है और इसका उपयोग हिंदू समारोहों, अनुष्ठानों और मंत्रों को शुरू करने के लिए किया जाता है। हिंदू परंपरा के अनुसार आ, औ और म अक्षर संस्कृत शब्द ओम बनाते हैं। वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव के संदर्भ हैं।
ओम शक्तिशाली क्यों है
गोपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि बिना ॐ लगाए किसी मंत्र का उच्चारण करने पर मंत्र निष्फल हो जाता है। मंत्र के आगे का उच्चारण मंत्र की शक्ति में वृद्धि कर देता है। ॐ शिव है और मंत्र है शक्ति रूप, इसलिए इन दोनों का एक साथ उच्चारण करना मंत्र में सिद्धि देनेवाला है। प्रत्येक स्तोत्र, उपनिषद्, गायत्री मंत्र, यज्ञ में आहुतियां देने वाले मंत्र, सभी अर्चनाएं, सहस्रनाम, भगवानों को याद करने के मंत्र आदि सब ॐ से ही आरंभ होते हैं।
ओम के पौराणिक महत्त्व
मनुस्मृति, पुराण, वेद, उपनिषद और अन्य हिंदू पवित्र पुस्तकें ओम की संरचना, चरित्र और महत्व पर चर्चा करती हैं। चूँकि ओम का उपयोग ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मांड के निर्माण के लिए किया गया था, यह हमें ब्रह्मा से जोड़ता है। गायत्री मंत्र की शुरुआत तीन अक्षरों भुः, भुवः और सः से बनी है, जो तीन अक्षरों आ, औ और मा से विकसित हुई है जो ओम अक्षर बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, वैदिक ग्रंथों में अनाहत नाद के संबंध में ओम का उल्लेख किया गया है।
वेदों का दावा है कि केवल सत्य का सच्चा साधक ही ओम के साथ तालमेल बिठा सकता है, एक ऐसी ध्वनि जो सभी सांसारिक स्थितियों और आयामों से परे है। यहां तक कि आश्रम प्रणाली, जिसमें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास जीवन चरण, साथ ही अनुष्ठान सप्तक और तीन पवित्र देवता विष्णु, शिव और ब्रह्मा शामिल हैं, ओम के विचार से उत्पन्न हुए हैं।
उल्लेखनीय हिंदू प्रचारकों के अनुसार, ओम का पाठ न तो बहुत लंबा होना चाहिए और न ही बहुत छोटा। इसका जप करने का सही तरीका आध्यात्मिक जागृति की ओर ले जाता है जहां व्यक्ति परम वास्तविकता से जुड़ जाता है। ओम हर चीज़ को शुभ बनाता है और पूर्ण सद्भाव प्रदान करता है। तो मांडूक्य (यह उपनिषद अथर्ववेद के ब्रह्म भाग से संबंधित है। इस उपनिषद में ओंकार की व्याख्या तथा उसकी उपासना के फल का वर्णन किया गया है) ओम को हमारे कानों, आंखों और हमारे शरीर को उस क्षमता से भरने देता है जो हमें हमारे जीवन के उद्देश्य को पूरा करके मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग पर ले जा सकता है।
ओम उच्चारण के फायदे
इसके 7, 11, 21, 51 बार उच्चारण करने से चित्त की उदासी, निराशा दूर होकर प्रसन्नता आती है। सामूहिक रूप से किया गया ॐ का उच्चारण और अधिक प्रभावशाली हो जाता है। अतः शरीर को तंदुरुस्त व मन को स्वस्थ बनाने के लिए हमें शांत मन से कुछ समय ॐ का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
ॐ को पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ ऊंचे दीर्घ स्वर में उच्चारण करना चाहिए। इसके उच्चारण से ध्वनि मैं कंपन शक्ति पैदा होती है। भौतिक शरीर के अणु-अणु पर इसका प्रभाव पड़ता है। मन में एकाग्रता और शक्ति जाग्रत होती है। वाणी में मधुरता आती है। विक्षिप्तता नष्ट हो जाती हैं। शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है। सभी संसारी विचारों का लोप हो जाता है। सुषुप्त शक्तियां जाग्रत होती हैं। आत्मिक बल मिलता है। जीवनी शक्ति ऊर्ध्वगामी होती है।
ओम की 35 पुनरावृत्तियों के माध्यम से आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करना भी ध्यान के लिए सहायक है। परिणामस्वरूप, शब्दांश योग का एक प्रमुख तत्व है, और पूर्वजों ने इसे आत्मज्ञान प्राप्त करने के साधन के रूप में नियोजित किया था।