Mahalaxmi Temple Kolhapur महालक्ष्मी मंदिर

Mahalaxmi Temple

करवीर निवासिन महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर

श्री महालक्ष्मी मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में स्थित है, जो शक्तिपीठों में से एक है जिसे दक्षिण काशी भी कहा जाता है। कोल्हापुर प्राचीन करवीर क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण शहर है, इसीलिए देवी महालक्ष्मी को करवीर निवासिनी भी कहा जाता है, कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर शक्ति के छह स्थलों में से एक है, जहाँ व्यक्ति इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है। . प्राचीन भारत के विभिन्न पुराणों ने 108 शक्तिपीठों को सूचीबद्ध किया है जहाँ शक्ति की देवी प्रकट हुई हैं। इनमें से करवीर क्षेत्र जिसे वर्तमान में कोल्हापुर कहा जाता है की श्री महालक्ष्मी का विशेष महत्व है।

कोल्हापुर, महाराष्ट्र शहर के मध्य में बसे तीन गर्भगृहों वाला यह पश्चिमाभिमुखी श्री महालक्ष्मी मंदिर हेमाड़पंथी है। मंदिर में चारों दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर के महाद्वार से प्रवेश के साथ ही देवी के दर्शन होते हैं। काले पत्थर से बनाई गई महालक्ष्मी की प्रतिमा है। मंदिर की एक दीवार पर श्री यंत्र की नक्काशी है।

मंदिर के खंभों पर नक्काशी का खूबसूरत काम देखते ही बनता है, लेकिन खंभों की संख्या आज तक कोई जान नहीं पाया क्योंकि जिसने भी गिनने की कोशिश की, उसी के साथ या उसके परिवार में कुछ अनहोनी जरूर घटी। पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की है, जिसके माध्यम से तीन दिनों के लिए सूर्य की किरणें देवी प्रतिमा पर सीधे पड़ती हैं (गर्भगृह को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि साल में एक बार मीन और सिंह राशि के महीनों में 3 दिनों की अवधि के लिए सूर्य की अस्त किरणें महालक्ष्मी की छवि के मुख पर पड़ती हैं।)

महालक्ष्मी गर्भगृह के ऊपर शिवलिंग और नंदी के साथ एक मंदिर है। देवकोष्ठ के घर वेंकटेश, कात्यायनी और गौरी शंकर – उत्तर, पूर्व और दक्षिण की ओर मुख किए हुए हैं। आंगन में नवग्रहों, सूर्य, महिषासुरमर्दिनी, विठ्ठल-रखमाई, शिव, विष्णु, तुलजा भवानी और अन्य के कई सहायक मंदिर हैं। इनमें से कुछ चित्र 11वीं शताब्दी के हैं। कन्नड़ के चालुक्य साम्राज्य के समय में या की करीब 700 A.D में इस मंदिर का निर्माण हो ने का अनुमान किया गया है। प्रांगण स्थित मंदिर में मणिकर्णिका कुंड भी है, जिसके तट पर विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर के बाहर लगे शिलालेख से पता चलता है कि यह 1900 साल पुराना है। शालिवाहन घराने के राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण करवाया था, जिसके बाद धीरे-धीरे मंदिर के अहाते में 35 मंदिर और निर्मित किए गए।

नवरात्रि की महत्वपूर्ण पूजा (घटस्थापना से उत्सव की तैयारी होती है)

  • पहले दिन बैठी पूजा
  • दूसरे दिन खड़ी पूजा
  • त्र्यंबोली पंचमी
  • छठे दिन हाथी के हौदे पर पूजा, रथ पर पूजा, मयूर पर पूजा
  • अष्टमी को महिषासुरमर्दिनी सिंहवासिनी के रूपों में देवी का उत्सव दर्शनीय होता है।

ऐसी मान्यता है कि माता महालक्ष्मी पहले तिरुपति में भगवान श्री विष्णु के साथ विराजमान थी। ऐसा कहा जाता है कि तिरुपति यानी भगवान विष्णु से रूठकर उनकी पत्नी महालक्ष्मी कोल्हापुर आईं। इस वजह से आज भी तिरुपति देवस्थान से आया शालू उन्हें दिवाली के दिन पहनाया जाता है। कोल्हापुर की श्री महालक्ष्मी को करवीर निवासी अंबाबाई के नाम से भी जाना जाता है।

माता महालक्ष्मी की प्रतिमा

माता महालक्ष्मी की प्रतिमा 2 फीट 9 इंच ऊंची मूर्ति 2000 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है। इस प्रतिमा में श्री महालक्ष्मी माता की 4 भुजाएं हैं। जिनमें महालक्ष्मी ने तलवार, ढाल गदा, शस्त्र आदि धारण किये हुई हैं। माता के मस्तक पर नाम और पीछे उनकी सवारी शेर हैं। हर साल नवरात्रि के उत्सव पर माता जी की शोभायात्रा कोल्हापुर से निकाली जाती है। माता महालक्ष्मी की पालकी 26 किलो सोने से बनी है।

किरनोत्सव समारोह

महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर में किरनोत्सव (सूर्य किरणों का त्योहार) तब मनाया जाता है जब सूर्य की किरणें सूर्यास्त के समय सीधे देवी महालक्ष्मी की मूर्ति पर पड़ती हैं:

31 जनवरी और 9 नवंबर : सूर्य की किरणें सीधे देवता के चरणों पर पड़ती हैं।

1 फरवरी और 10 नवंबर : सूर्य की किरणें सीधे देवता की छाती पर पड़ती हैं।

2 फरवरी और 11 नवंबर : सूर्य की किरणें सीधे देवता के पूरे शरीर पर पड़ती हैं।

महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर दर्शन समय

दैनिक मंदिर खुलने का समय 04:30 सुबह

दैनिक मंदिर दर्शन समय 05:00 सुबह से 22:00 बजे तक

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