Hindu Panchang हिन्दू पंचांग

“हिन्दू कैलेंडर” शब्द उन सभी कैलेंडरों को संदर्भित करता है जिनका उपयोग भारत में सदियों से किया जाता रहा है। पंचांग शब्द के पांच अंग होने का यही अर्थ है। पंचांग में समय गणना के पाँच अंग हैं : वार , तिथि , नक्षत्र , योग , और करण। 

ये चान्द्रसौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना के एक समान सिद्धांतों और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ (वर्षप्रतिपदा) आदि की दृष्टि से अलग होते हैं।

भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख पञ्चाङ्ग 

        (१) विक्रमी पञ्चाङ्ग – यह सर्वाधिक प्रसिद्ध पञ्चाङ्ग है जो भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में प्रचलित है।

       (२) तमिल पञ्चाङ्ग – दक्षिण भारत में प्रचलित है,

        (३) बंगाली पञ्चाङ्ग –  बंगाल तथा कुछ अन्य पूर्वी भागों में प्रचलित है।

        (४) मलयालम पञ्चाङ्ग – यह केरल में प्रचलित है और सौर पंचाग है।

हिन्दू पञ्चाङ्ग का उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से होता आ रहा है और आज भी भारत और नेपाल सहित कम्बोडिया, लाओस, थाईलैण्ड, बर्मा, श्री लंका आदि में भी प्रयुक्त होता है। हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार ही हिन्दुओं/बौद्धों/जैनों/सिखों के त्यौहार होली, गणेश चतुर्थी, सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि, वैशाखी, रक्षा बन्धन, पोंगल, ओणम ,रथ यात्रा, नवरात्रि, लक्ष्मी पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी, दुर्गा पूजा, रामनवमी, विसु और दीपावली आदि मनाए जाते हैं। 

भारतीय पंचांग प्रणाली में एक प्राकृतिक सौर दिन को सावन दिवस कहा जाता है। सप्ताह में सात दिन होते हैं और उनको वार कहा जाता है। दिनों के नाम सूर्य , चन्द्र , और पांच प्रमुख ग्रहों पर आधारित हैं , जैसे नाम यूरोप में भी प्रचलित हैं।

क्रम       संस्कृत नाम                                        हिंदी (तद्भव व क्षेत्रीय बोलियाँ)

1       रविवासर आदित्य वासर                  रविवार (आइत्तवार ,इत्तवार,इतवार अतवार , एतवार)

2      सोमवासर                                       सोमवार (सुम्मार)

3      मङ्गलवासर या भौम वासर               मंगलवार (मंगल )

4      बुधवासर या सौम्य वासर                 बुधवार (बुध)

5      गुरुवासर बृहस्पतिवासर                  गुरुवार बृहस्पतिवार (बृहस्पत)

6      शुक्रवासर                                       शुक्रवार (सुक्कर)

7      शनिवासर/शनिश्चरवासर/स्थावर     शनिवार शनिश्चरवार (शनिचर, सनीच्चर) थावर

काल गणना – घटि, पल, विपल

हिन्दू समय गणना में समय की अलग अलग माप इस प्रकार हैं। एक सूर्यादय से दूसरे सूर्योदय तक का समय दिवस है , एक दिवस में एक दिन और एक रात होते हैं। दिवस से आरम्भ करके समय को साठ साठ के भागों में विभाजित करके उनके नाम रखे गए हैं ।

60 घटी 24 घंटे के बराबर है, या 1 घटी 24 मिनट के बराबर है; घटी को बोलचाल की भाषा में घड़ी भी कहा जाता है।

60 पल 24 मिनट के बराबर है, या 1 पल 24 सेकंड के बराबर है।

1 घटी = 60 पल

60 पल्स 24 सेकंड के बराबर हैं, इसलिए एक पल्स 60 पल्स के बराबर है।

1 विपल 60 प्रतिविपल के बराबर होता है।

इसके अतिरिक्त

पाल = 6 प्राण;

प्राण = 4 सेकंड.

परिणामस्वरूप, एक दिन में 3600 मिनट होते हैं। जब पृथ्वी एक दिन के दौरान अपनी धुरी पर घूमती है तो सूर्य विपरीत दिशा में यात्रा करता हुआ प्रतीत होता है। सूर्य 3600 सेकंड या 360 डिग्री में एक चक्कर लगाता है। एक डिग्री सूर्य का कोण है जो हर 10 सेकंड में बदलता है।

तिथि , पक्ष ,और माह

हिन्दू पंचांगों में मास, माह व महीना चन्द्रमा के अनुसार होता है। अलग अलग दिन पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा के भिन्न भिन्न रूप दिखाई देते हैं। जिस दिन चन्द्रमा पूरा दिखाई देता है उसे पूर्णिमा कहते हैं। पूर्णिमा के उपरांत चन्द्रमा घटने लगता है और अमावस्या तक घटता रहता है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता और फिर धीरे धीरे बढ़ने लगता है और लगभग चौदह व पन्द्रह दिनों में बढ़कर पूरा हो जाता है। इस प्रकार चन्द्रमा के चक्र के दो भाग है। एक भाग में चन्द्रमा पूर्णिमा के उपरांत अमावस्या तक घटता है , इस भाग को कृष्ण पक्ष कहते हैं। इस पक्ष में रात के आरम्भ मे चाँदनी नहीं होती है। अमावस्या के उपरांत चन्द्रमा बढ़ने लगता है। अमावस्या से पूर्णिमा तक के समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं। पक्ष को साधारण भाषा में पखवाड़ा भी कहा जाता है। चन्द्रमा का यह चक्र जो लगभग २९.५ दिनों का है चंद्रमास व चन्द्रमा का महीना कहलाता है । दूसरे शब्दों में एक पूर्ण चन्द्रमा वाली स्थिति से अगली पूर्ण चन्द्रमा वाली स्थिति में २९.५ का अन्तर होता है।

चंद्रमास २९.५ दिवस का है, यह अवधि 30 दिनों से कम है. तिथि इस समय के तीसरे भाग का नाम है। इसलिए एक तिथि को एक दिन से कुछ मिनटों तक संक्षिप्त किया जाता है। पूर्णिमा की स्थिति (जब चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई देता है) आने पर पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाती है, और फिर कृष्ण पक्ष की पहली तिथि शुरू होती है। दोनों पक्षों में तिथियाँ एक से चौदह तक बढ़ती हैं और पक्ष की अंतिम तिथि अर्थात पंद्रहवी तिथि पूर्णिमा व अमावस्या होती है।

तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)। 

माह का अंत दो प्रवृत्तियों को दर्शाता है। कुछ क्षेत्रों में महीने के अंत में पूर्णिमा होती है, जबकि अन्य में अमावस्या होती है। अमावस्यांत उस महीने का नाम है जो अमावस्या के साथ समाप्त होता है, जबकि पूर्णिमांत उस महीने का नाम है जो पूर्णिमा के साथ समाप्त होता है। अधिकांश स्थानों पर पूर्णिमांत माह का ही प्रचलन है। चन्द्रमा के पूर्ण होने की सटीक स्थिति सामान्य दिन के बीच में भी हो सकती है और इस प्रकार अगली तिथि का आरम्भ दिन के बीच से ही सकता है।

हिन्दू पंचांक के अनुसार महिनो के नाम

  • चैत्र – (मार्च-अप्रैल)
  • वैशाख – (अप्रैल-मई)
  • ज्येठ – (मई-जून)
  • आषाढ़ – (जून-जुलाई)
  • श्रावन – (जुलाई-अगस्त)
  • भाद्रपद – (अगस्त-सितम्बर)
  • आश्विन – (सितम्बर-अक्टूबर)
  • कार्तिक – (अक्टूबर-नवम्बर)
  • मार्गशीर्ष – (नवम्बर – दिसम्बर)
  • पौष – (दिसम्बर-जनवरी)
  • माघ – (जनवरी-फरवरी)
  • फाल्गुन – (फ़रवरी-मार्च)

नक्षत्र

तारामंडल में चन्द्रमा के पथ को २७ भागों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक भाग को नक्षत्र कहा गया है। दूसरे शब्दों में चन्द्रमा के पथ पर तारामंडल का १३ अंश २०’ का एक भाग नक्षत्र है। हर भाग को उसके तारों को जोड़कर बनाई गई एक काल्पनिक आकृति के नाम से जाना जाता है।

क्रम नाम स्वामी ग्रह

1 अश्विनी  केतु

2 भरणी  शुक्र

3 कृत्तिका  रवि 

4 रोहिणी चन्द्र

5 मॄगशिरा  मंगल 

6 आद्रा  राहु

7 पुनर्वसु बृहस्पति

8 पुष्य  शनि 

9 अश्लेशा बुध

10 मघा  केतु

11 पूर्वाफाल्गुनी  शुक्र 

12 उत्तराफाल्गुनी  रवि

13 हस्त  चन्द्र

14 चित्रा  मंगल

15 स्वाती राहु

16 विशाखा  बृहस्पति

17 अनुराधा  शनि

18 ज्येष्ठा  बुध

19 मूल  केतु

20 पूर्वाषाढा  शुक्र

21 उत्तराषाढा  रवि

22 श्रवण  चन्द्र

23 श्रविष्ठा धनिष्ठा मंगल

24 शतभिषा  राहु

25 पूर्वभाद्र्पद  बृहस्पति

26 उत्तरभाद्रपदा  शनि

27 रेवती  बुध

 



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