Taraknath Mahadev Temple तारकनाथ महादेव मंदिर

Taraknath Mahadev Temple तारकनाथ महादेव मंदिर

तारकनाथ महादेव मंदिर

भगवान शिव को तारकेश्वर के नाम से जाना जाता है और यह मंदिर उन्हीं को समर्पित है। तारकनाथ मंदिर में उन्हें दिया गया नाम है, जहां उनकी पूजा की जाती है। यह मंदिर, जो हुगली जिले के तारकनाथ शहर में स्थित है, भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। दर्ज इतिहास के अनुसार, मंदिर की स्थापना 1729 ई. में राजा भारमल्ला ने की थी। मंदिर का निर्माण अटचला स्थापत्य शैली में किया गया था, जो पश्चिम बंगाल के लिए अद्वितीय है। मंदिर के आसपास देवी लक्ष्मी नारायण और देवी काली के मंदिर हैं।

दूधपुकुर जल कुंड, जिसे एक पवित्र कुंड माना जाता है, मंदिर के उत्तर में स्थित है। लोग मोक्ष पाने और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दूधपुकुर जल कुंड में डुबकी लगाते हैं। मंदिर का निर्माण पारंपरिक बंगाली वास्तुकला में किया गया है। आंतरिक मंदिर के सामने एक बालकनी है और भक्तों के बैठने और चिंतन करने के लिए एक विशाल हॉल बालकनी के ठीक सामने स्थित है, जिसके अंदर और चारों तरफ एक संगमरमर का मार्ग है।

तारकनाथ महादेव मंदिर का इतिहास और उससे जुड़ी किंवदंती

तारकनाथ महादेव मंदिर बंगाल का प्रमुख शिव मंदिर है। जिसके बारें में.कहा जाता है कि भारमल राव जो राजा विष्णु दास का भाई था, उसके महल में एक बहुत सुंदर गाय थी। जिसका नाम कपिला था। भारमल का महल तारकनाथ महादेव से 3 मील दक्षिण में रामनगर गाँव में था। कपिला गाय को मुकन्द गोप जंगल में चराने के लिए तारकनाथ में लाता था।। अचानक कपिला गाय का दूध बहुत कम हो गया। राजा भारमल ने मुकन्द गोप से उसका कारण पूछा, लेकिन मुकन्द गोप कुछ भी उत्तर नही दे सका। इस पर राजा भारमल ने मुकन्द गोप का तिरस्कार किया।

एक दिन मुकन्द ने देखा कि जंगल में एक बहुत सुंदर पत्थर है। और उस पत्थर में एक सुराख है। कपिला गाय ने वहां जाकर उस पत्थर के ऊपर अपने चारों थन कर दिये और उसके चारों थनों से दूध निकलकर पत्थर के सुराख में जाने लगा। मुकन्द को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ।

उसने वापिस महल आकर राजा भारमल को यह सारी बात बताई। राजा भारमल को भी मुकन्द गोप की बात त सुंदर बहुत आश्चर्य हुआ। राजा भारमल ने स्वयं वहां जाकर वह पत्थर देखा। राजा भारमल को वह सुंदर पत्थर बहुत अच्छा लगा। उन्होंने पत्थर को महल ले जाने का निश्चय किया और वह पत्थर निकालने के लिए आदमी लगाए।

मजदूरों द्वारा बहुत गहराई तक खुदाई करने के बाद भी उस पत्थर का अंत दिखाई नही दिया। रात्रि में तारकनाथ महादेव ने राजा भारमल को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि तुमको मुझमें भक्ति है, तो उस पत्थर की जगह पर मेरा मंदिर बनवाओ। तत्पश्चात राजा भारमल ने उसी स्थान पर तारकनाथ महादेव का यह मंदिर बनवाया।

तारकनाथ महादेव मंदिर का महत्व

यह मंदिर भारत के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है, और आगंतुक विभिन्न प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करने के लिए यहां आते हैं। वे सभी देवी-देवताओं में से सबसे दयालु देवी-देवताओं से मोक्ष, धन, ज्ञान, विभिन्न भौतिक सामान, शांति, स्वास्थ्य सुधार और भक्तों के आधार पर कई अन्य चीजों सहित विभिन्न चीजों की याचना करते हैं।

तारकनाथ महादेव मंदिर उत्सव

सोमवार को, जिसे भगवान शिव की पूजा का दिन माना जाता है, भक्त मंदिर में विशेष रूप से सक्रिय रहते हैं। महा शिवरात्रि और शिवगजन पर, मंदिर भक्तों की भीड़ से भर जाता है। शिवगजन एक पांच दिवसीय त्योहार है जो चैत्र महीने के आखिरी दिन समाप्त होता है, जबकि महा शिवरात्रि पूरे फाल्गुन महीने में मनाई जाती है। इसके अलावा, भगवान शिव की पूजा उनके सभी अनुयायियों द्वारा श्रावण के दौरान और श्रावण के सभी सोमवारों में की जाती है।

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