रानी सती की कथा
राजस्थान और देश के अन्य क्षेत्रों में मारवाड़ी समुदाय रानी सती दादी की पूजा करता है और उन्हें मां दुर्गा का रूप मानता है। झुंझुनू वाली रानी सती की कथा कई बर्षो नही बल्कि कई युगों पुरानी मानी जाती है। रानी सती दादी का संबंध महाभारत से है। वह अभिमन्यु की पत्नी उतेरा थी। जब महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु की मृत्यु हो गई थी, उस समय उतेरा अपने शरीर को अभिमन्यु की अंत्येष्टि अग्नि में डालकर सती होना चाहती थी। लेकिन उत्तरा गर्भ से थी और एक बच्चे को जन्म देने वाली थी।
श्रीकृष्ण ने उसे दर्शन दिए और उसे ऐसा न करने की सलाह दी। श्री कृष्ण की यह बात सुनकर उत्तरा बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने सती होने के अपने निर्णय को बदल लिया लेकिन उसके बदले उन्होंने ने एक इच्छा जाहिर जिसके अनुसार वह अगले जन्म में अभिमन्यु की पत्नी बनकर सती होना चाहती थी।
उसके बाद उत्तरा अगले जन्म में राजस्थान के डोकवा गाँव में गुरसमल बिरमेवाल की बेटी के रूप में पैदा हुई थी जिनका नाम नारायणी रखा गया था। जबकि अभिमन्यु का जन्म हिसार में जलीराम जालान के पुत्र के रूप में हुआ था और उनका नाम तंदन जालान रखा गया था। टंडन और नारायणी ने शादी कर ली और शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। उनके पास एक सुंदर घोड़ा था जिस पर हिसार के राजा के पुत्र की नजर थी जो उसे किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहता था लेकिन तंदन ने अपना कीमती घोड़ा राजा के बेटे को सौंपने से इनकार कर दिया।
राजा का बेटा तब घोड़े को जबरदस्ती हासिल करने का फैसला करता है और इस तरह टंडन को द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती देता है। टंडन बहादुरी से लड़ाई लड़ता है और राजा के बेटे को मार डालता है। तभी राजा क्रोधित हो उठता है और टंडन को धोके से मार देता है। टंडन की वीरगति प्राप्ति को देखकर नारायणी कुछ समय के लिए तो शोक में डूब जाती है लेकिन कुछ समय बाद वीरता और पराक्रम से लड़कर राजा को मार गिराती है और अपने पति की हत्या का प्रतिशोध पूरा कर लेती है। उसके बाद अपने पति के साथ सती होने की इच्छा को सामने रखते हुए तंदन के साथ सती हो गई। उसके बाद से ही नारायणी को नारी वीरता और शक्ति की प्रतीक के रूप में पूजा जाना लगा और उन्होंने रानी सती, दादी माँ, झुंझुनू वाली रानी सती जैसे अन्य नामों से पुकारा और पूजा जाने लगा।
रानी सती मंदिर का इतिहास
रानी सती का वास्तविक नाम नारायणी था जो उनके पैदा होने का पश्चात रखा गया था। माना जाता है कि एक युद्ध के दौरान नारायणी देवी या रानी सती के पति की मौत हो जाती है जिसके बाद रानी सती अपने पति की मौत का प्रतिशोध लेती है और अपने पति के साथ सती हो जाती है। जिसके बाद से लोग नारायणी देवी को आदि शक्ति का रूप भी मानने लगे। इस प्रकार धीरे-धीरे लोगों की नारायणी देवी के प्रति श्रद्धा बढती ही गई और उन्हें रानी सती के रूप में पूजा जाने लगा। यदि हम रानी सती मंदिर के इतिहास पर नजर डालें तो यह हमे आज से लगभग 400 बर्ष पीछे ले जाता है। मंदिर में मिले प्रमाणों और किवदंतीयों के अनुसार मंदिर की देवता रानी सती है जो एक राजस्थानी महिला रानी थी।
झुंझुनू में स्थित रानी सती मंदिर भारत के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है। मंदिर को देश के सबसे पुराने तीर्थ स्थलों में से एक होने का गौरव प्राप्त है। मंदिर प्रतिभा का एक असाधारण नमूना है जो विशेष ध्यान देने योग्य है।
रानी सती मंदिर, झुंझुनू का वर्णन
सभी जगह से भक्त अपनी प्रार्थना और पूजा हर रोज अनुष्ठानिक रूप से करते हैं। भादो अमावस्या के दिन झुंझुनू में एक पवित्र पूजनोत्सव आयोजित किया जाता है। हर साल इस शुभ दिन पर, लाखों भक्त मंदिर परिसर में एकत्र होते हैं और भव्य श्री रानी सतीजी को देखने के लिए कतारबद्ध होते हैं।
महिला या पुरुष देवताओं की किसी भी मूर्ति या चित्र का अभाव मंदिर की सबसे विशिष्ट विशेषता है। हिंदू धर्म के अनुसार, परम शक्ति को एक त्रिशूल द्वारा दर्शाया जाता है, जिसकी पूजा इसी रूप में की जाती है। प्रधान मंड के शिखर पे रानी सतीजी की एक उत्कृष्ट पेंटिंग है। सफेद संगमरमर से बना पूरा भवन बहुत ही आकर्षक है। श्री रानी सतीजी का मुख्य मंदिर मुख्य गर्भगृह का स्थान है।
रानी सती मंदिर प्रतिदिन सुबह 5.00 बजे से दोपहर 1.00 बजे तक और दोपहर 3.00 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक खुलता है।
रानी सती मेला
हर साल भादों मास की अमावस्या को राजस्थान के झुंझुनू में राणी सती मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। यहां हर साल भादों अमावस्या को भव्य मंगलपाठ का आयोजन होता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस साल भी 27 अगस्त को यह उत्सव मनाया जाएगा, जिसकी तैयारियां जोरो शोरों से जारी है। राणी सती मंदिर में हर साल मनाया जाने वाला भादों उत्सव देशभर में प्रसिद्ध है।